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पश्चाताप

पश्चाताप

गाँधी जी के लिए जिन शब्दों का प्रयोग सतपाल ने किया था , उससे मैं हत्प्रभ तो हुआ ही था , चिंतित भी हुआ था । हम किसी महापुरुष के विचारों से असहमत हो सकते हैं । उनकी स्वस्थ आलोचना भी कर सकते हैं । पर , उनके लिए अपशब्दों का प्रयोग ! यह तो उनकी शान में गुस्ताखी है । गाँधी जी के प्रति इतनी घृणा , आखिर क्यों ? मैंने प्रतिवाद किया । पर , वह तरह - तरह के झूठे इल्जाम लगाकर उन्हें कोसता रहा । शायद वह बचपन से ही अपने परिवार में ऐसी बातें सुनता रहा था । वह गाँधीजी के प्रति नफरत से लबरेज था । पर, मुझे उसका यह व्यवहार अत्यधिक खल गया और मैंने उसी पल से उससे दूरी बढ़ानी शुरू कर दी । चंद हफ्तों बाद मेरा उस जहाज से तबादला हो गया ।

यह प्रसंग 1977 ई. की है । मैं और सतपाल एक ही जहाज पर कार्यरत थे । दोनों एक ही विभाग से संबद्व थे , सो हमारा 'मेस' भी एक ही था । वह हरियाणा का रहनेवाला था और मैं बिहार का । किंतु , यह कुदरत की करिश्मा थी कि न केवल हमारी शारीरिक बनावट बल्कि शक्ल-सूरत भी कुछ कुछ मिलती - जुलती थी । हमदोनों की आदतें , स्वभाव और एक हद तक विचार भी मिलते-जुलते थे । कई बार अन्य विभाग के लोग हमारे बीच फर्क करने में गलती कर बैठते थे । हमारी दोस्ती की चर्चा पूरे जहाज में होती रहती थी । होती भी क्यों नहीं , हमदोनों सुबह का नाश्ता और रात का खाना तकरीबन रोज एक ही थाली में खाते थे , जबकि वह आर्यसमाजी परिवार से होने के कारण विशुद्ध वेजिटेरियन था और मैं सर्वग्रासी । जिस प्लेट में मैं उबला हुआ अंडा या ऑमलेट खा रहा होता , वह वेजिटेबल कटलेट या गोभी का पकौड़ा । किंतु , उस दिन के बाद हमारी थाली अलग-अलग हो चुकी थी । ऐसा नहीं कि मैं वैचारिक रूप से गाँधीवादी था । सच तो यह है कि तब मैंने उनके जीवन और विचारों के बारे में विस्तार से पढ़ा तक नहीं था । किंतु , अपने स्कूली शिक्षा के दौरान जो भी उनके बारे में पढ़ा या सुना था , उसके कारण हमेशा ही उन्हें श्रद्धा की दृष्टि से देखता था । 

इस वाकये के बाद अपने जॉब की प्रकृति के अनुसार हम कई वर्षों तक अलग-अलग जहाजों में सर्व करते रहे । और , यह महज संयोग ही था कि एक लंबे अंतराल के बाद हम फिर एक ही जहाज में आ पहुँचे । 
हमदोनों एक दूसरे से मिलकर बहुत खुश थे । जब कभी हम फुर्सत में होते , पिछली जहाजों में बीते दिनों की कहानियां एक दूसरे को सुनाते । इसी क्रम में एक दिन सतपाल ने अपने दक्षिण अफ्रीका के दौरे की चर्चा छेड़ दी । उसने बताया कि वहाँ घूमने के बाद महात्मा गाँधी के बारे में उसकी धारणा पूरी तरह बदल गई । मैं आश्चर्य से उसकी बातें सुन रहा था । तभी शायद उसे पिछली जहाज वाली घटना याद आ गई । उसने मेरे हाथ को हल्के से दबाते हुए कहा -- " उस दिन मैंने जाने-अनजाने बहुत बड़ी गलती की थी , यार ! गाँधी जी सचमुच एक महान हस्ती थे । "
मेरे मुँह से अनायास निकला -- " सच ...! "
" हाँ , यार ! यह अहसास मुझे दक्षिण अफ्रीका के दौरे के दौरान हुआ । उसके बाद मैंने खोज खोजकर उनकी किताबें पढ़ी । प्लीज एक्सक्यूज मी ....! " 
उसके चेहरे पर घोर पश्चाताप के भाव थे ।

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