पिता
सोचता हूँ
सबकी तरह
मैं भी याद करूँ
अपने पिता को
पर ,
कहाँ से शुरू करूँ
उनके कंधों पर बैठे
किलकते बचपन से
मुँह में मारते गाय के दूध की धार से
फटी हथेलियों से ढकते सूरज की ताप से
या फटी एँड़ियों से रिसते खून से
कहाँ से शुरू करूँ
खुरपी , बकुआ , खंती , कुदाल से
या धरती की छाती चीरते
हल की फाल से
कूँड़ी , चाँड़ , करींग से
या रहट चलाते
बैलों को दी गई टिटकार से
कहाँ से शुरू करूँ
कड़ी धूप में नंगे बदन
खेत में बाँछते घास से
या झुकी कमर बोझ ढोते
फूल रही उनकी साँस से
कहाँ से और कैसे याद करूँ
सोच नहीं पाता हूँ
एकदिन नहीं
मैं तो हर पल ही
उनकी यादों के साथ जीता हूँ .
---- कुमार सत्येन्द्र
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