जब पिता ने गाँव के जेठ रैयत के पास बचा हुआ जमीन का टुकड़ा भी चंद रुपयों की खातिर गिरवी रख दिया , तो मनुआ ने क्रोधित होकर कहा -- " मिल गई शांति ...पुरखों की आखिरी निशानी भी बेच आए न ! "
" बेचा नहीं है बेटा ! ", बाप ने शांत स्वर में जवाब दिया ," सिर्फ इजारा रखा है , जमीन की मिल्कियत हमारी ही है । जिस दिन पैसे हो जायेंगे , छुड़ा लूँगा । " कहते हुए बाप ने बाजार की ओर रूख किया ।
" समझ गया , अपने शानो-शौकत के लिए आपने हमें कंगाल कर दिया । "
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