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इजारा

जब पिता ने गाँव के जेठ रैयत के पास बचा हुआ जमीन का टुकड़ा भी चंद रुपयों की खातिर गिरवी रख दिया , तो मनुआ ने क्रोधित होकर कहा -- " मिल गई शांति ...पुरखों की आखिरी निशानी भी बेच आए न ! "

" बेचा नहीं है बेटा ! ", बाप ने शांत स्वर में जवाब दिया ," सिर्फ इजारा रखा है , जमीन की मिल्कियत हमारी ही है । जिस दिन पैसे हो जायेंगे , छुड़ा लूँगा । " कहते हुए बाप ने बाजार की ओर रूख किया ।

" समझ गया , अपने शानो-शौकत के लिए आपने हमें कंगाल कर दिया । " 

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अपना ख्याल रखना

अपना ख्याल रखना ***************** बेटे का मैसेज आया है  ह्वाट्सएप पर , पापा ! अपना ख्याल रखना सोचता हूँ मैं , लिख दूँ ..... बेटे ! अपना ही तो रखा है ख्याल आजतक गाँव की जिस माटी ने जाया  उसे छोड़ दिया एकदिन जिन हाथों ने सहारा देकर चलना सिखाया हँसना , कूदना , दौड़ना सिखाया उन्हें दौड़ में बहुत पीछे छोड़ मैं आगे निकल गया फिर कभी मुड़कर नहीं देखा  नहीं ली सुध कभी उनकी अपना ही तो रखता रहा ख्याल नदियों का पानी जब हुआ जहरीला मैंने बंद कर ली अपनी आँखें नगर का जलापूर्ति हुआ बाधित मैंने धरती की छाती छेदकर निकाला पेय जल जब भूगर्भीय जल में पाये  कुछ खतरनाक लवण खरीद लिया जल शोधक मशीन अपना ही तो रखता रहा ख्याल घर को किया चाक-चौबंद रोका मच्छरों की फौज को गंधाती नालियों के दुर्गंध को लगाया घर में वायु शुद्धिकरण यंत्र सूरज की ताप से झुलस न जाऊँ हर कमरे को बनाया वातानुकूलित कब किया औरों का ख्याल  अपना ही तो रखा है ख्याल अबतक तुम्हारी शिक्षा व्यवसायिक हो  प्रतियोगिताओं में  तुम अव्वल आओ लचर थी व्यवस्था सरकारी स्कूलों की हिकारत से देखा उन्हें डाला तुम्हें महँगे निजी स्कूलों में तुम्हारे ...सिर्फ तुम्हारे ही  भ

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हत्याओं के दौर में हत्याओं के इस दौर में खेत - खलिहान घर - दालान सब हैं वीरान नहीं लगता चौपाल गांव के चौराहों पर चिपका है भय घर के दीवारों से खो गई हैं कहीं बच्चों की किलकारियां माताओं की लोरियां भूल गए हैं लोग संझा - प्राती नहीं गातीं औरतें जंतसार , सोहर और झूमर ढोल - मंजीरे नहीं बजते मंदिर के चौबारे पर न भजन , न कीर्तन भूल गए हैं लोग होली, बिरहा, लोरकाइन गोगा साव अब भी हैं पर नहीं सुनाते सोरठा - बृजाभार हत्याओं के इस दौर में नहीं हंसते लोग ठठाकर न रोते हैं बुक्का फाड़कर सिसकियों में डूबते - उतराते बंद हो जाते हैं घरों में सूरज के ढलते ही रह जाते हैं गलियों में आवारा कुत्ते या हत्यारे विचरण करते अंधेरे में निर्द्वंद्व , निर्बाध गांव के वक्ष पर पसरा सन्नाटा होता है भंग कभी गोलियों की आवाज से कभी कुत्तों के रुदन से सिहर उठते हैं लोग कुत्तों के रोने को मानते हैं अशुभ क्यों , क्यों हो रहा है ऐसा ? बंद दरवाजों पर दस्तक देते प्रश्न प्रश्नों से कतराते लोग जानते हैं बोलने की सजा एक और खौफनाक मौत किंतु , एक न एक दिन उठेंगे लोग इस दहशतगर्द

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