लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लँगूर।
बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर॥
अर्थ: लाल रंग का सिंदूर लगाते हैं ,देह जिनकी लाल हैं और लंबी सी पूंछ हैं वज्र के समान बलवान शरीर हैं जो राक्षसों का संहार करते हैं ऐसे कपि देवता को बार बार प्रणाम।
यही पढ़ा था.
यही सुना था.
देखी थी यही छवि
फोटो व कैलेंडर में.
पर, अचानक हुआ बदलाव
तुम्हारे रंग - रूप में
न तुम्हारा बदन रहा लाल
न ही तुम्हारे झंडे
और न रही तुम्हारे
चेहरे की सौम्यता
केशरिया रंग के झंडे पर
तनी हुई भृकुटियां
आंखें तरेरे - नथुना फुलाए
यह रौद्र रूप
पहले तो कभी नहीं देखा.
फिर वे कौन हैं
जो कर रहे हैं विकृत
तुम्हारे चेहरे को
बदल रहे हैं
तुम्हारे बदन और झंडे के रंग को
तुम्हारी पहचान छिनने की यह कोशिश
क्यों हो रहा है प्रभु
किसकी साजिश है यह ?
-- कुमार सत्येन्द्र
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