मनुआ -- 57
मैं और मनुआ तालकटोरा स्टेडियम, दिल्ली में आयोजित किसान - मजदूर सम्मेलन की चर्चा कर ही रहे थे कि पांडे आ धमका। आते - आते शायद उसने हमारी बातें सुन ली थी। इसलिए मनुआ पर कटाक्ष करते हुए कहा , " अरे भाई, जब अमृत काल में आर्यावर्त की पावन भूमि पर अमृत वर्षा हो रही है , तब भी तुम वही खटराग लेकर बैठे हो... सम्मेलन, आंदोलन , धरना- प्रदर्शन .... अरे, कुछ दिन तो देश को प्राप्त अप्रत्याशित सफलता से चारो ओर प्रवाहित आनंद की गंगा में डुबकी लगा लो। "
" डुबकी ही तो लगा रहे हैं, भइया! महंगाई की ऊंची शिखर से बेरोजगारी के महासागर में कूदकर डुबकी ही तो लगा रहे हैं , हिमाचल और उत्तराखंड से मुंबई, गुड़गांव और अहमदाबाद तक पुरजोर बहती विकास की गंगा में डुबकी ही तो लगा रहे हैं। जहाँ तक अमृत काल में अमृत वर्षा का सवाल है, वह मणिपुर से नूंह - मेवात और मुजफ्फरनगर तक किस तरह मुसलाधार बरस रही है भइया कि क्या बतायें। नफरत की सैलाब में सभ्यता और संस्कृति के सारे चिह्न मटियामेट हो रहे हैं.....। "
पांडे ने बीच में ही बात काट दी, " बस करो मनुआ ! हम समझ गए कि तुमलोग कभी पॉजिटिव सोचोगे ही नहीं। चंद्रयान - 3 की सफलता से विश्व के सारे महारथियों के सिर चकरा रहे हैं और तुम्हें इसकी कोई खुशी ही नहीं है ! हमारे दूरदर्शी प्रधानमंत्री जी के कुशल नेतृत्व में हमारे देश के वैज्ञानिकों ने जो मुकाम आज हासिल किया है, पिछले 77 वर्षों में कभी किसी ने नहीं किया। "
" ठीक कहा भइया आपने। इसरो का तो जन्म ही 2014 में हुआ है! पहला रॉकेट छोड़ने से लेकर चंद्रयान - 3 तक के सारे अभियान तो बस पिछले 9 सालों की देन है। होमी भाभा, विक्रम साराभाई, मेघनाद साहा से लेकर एपीजे अब्दुल कलाम तक की तो कोई भूमिका ही नहीं रही है! प्रथम प्रधानमंत्री से लेकर पिछले प्रधानमंत्री तक सभी लोग अदूरदर्शी और घोर दकियानूसी विचारों के थे। उनके दौर में हमने कोई वैज्ञानिक उपलब्धि हासिल ही नहीं की थी, है न ? "
" अरे, यह मैंने कब कहा! किन्तु, वैज्ञानिकों का जिस तरह से उत्साहवर्धन और मार्ग निर्देशन चमत्कारी पुरुष मोदीजी ने किया है, वह अद्वितीय और अतुलनीय है....। "
" भला इसमें कोई दो राय है भइया! ऐसा सहयोग तो पहले किसी सरकार ने नहीं ही किया होगा । मालूम हुआ है कि इसरो के वैज्ञानिकों को विकसित देशों के वैज्ञानिकों से पांच गुना कम वेतन मिलता है ? "
" बस, शुरू हो गयी तुमलोगों की झूठी मुहिम। ऐसा तुमने किस चैनल पर देख - सुन लिया या किस अखबार में पढ़ लिया ? ऐसा होता तो क्या इसरो के वैज्ञानिक अपने प्रेस कांफ्रेंस में इसकी चर्चा नहीं करते? "
" अभी वाले इसरो के अध्यक्ष ने तो कुछ नहीं कहा है, पर पूर्व अध्यक्ष माधवन ने कहा है कि हमारे वैज्ञानिकों के वेतन विकसित देशों के वैज्ञानिकों के वेतन से पांच गुना कम है, कि हमारे वैज्ञानिकों में कोई भी करोड़पति नहीं है, कि वे सभी सादा जीवन बिताते हैं....। "
" लो, तो इसमें बुराई क्या है? ' सादा जीवन उच्च विचार ' तो हमारे देश का मूल सिद्धांत रहा है.... "
" हाँ , भइया! ...और हमारे प्रधानमंत्री तो इसका जीता - जागता उदाहरण हैं । दिन भर में मात्र आठ - दस बार ही तो ड्रेस बदलते हैं और महज आठ हजार करोड़ के प्लेन में विश्व भ्रमण करते हैं। सादा जीवन का यह एक बड़ा ही नायाब उदाहरण है , भइया ! "
" देखो, अब तुम लगे राजनीति बतियाने। लेकिन, कान खोलकर सुन लो, अभी और कई साल तुमलोगों को इन्हें झेलना पड़ेगा। "-- कहते हुए पांडे उठा और चल दिया।
मनुआ ने मेरी ओर देखा और मुस्कुरा दिया। अपनी बातचीत के टूटे हुए सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए हम सितम्बर अभियान की रूपरेखा पर चर्चा करने लगे।
---- कुमार सत्येन्द्र
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