मनुआ और मैं 23 - 24 फरवरी को आहूत राष्ट्रव्यापी मजदूर हड़ताल के बारे में चर्चा ही कर रहे थे कि पांडे आ पहुँचा । उसने आते ही कहा -- " ई महराज - महाराजिन लोग भी न ....गजबे करते हैं ! "
" का हुआ पांडे भइया ? का कह दीहिन महाराज जी ने...? "
" तुमने नहीं सुना का ? अरे , अब ऊ कह रहे हैं.. और ठीके कह रहे हैं कि हमें भी अपना वंश विस्तार करना चाहिए..।"
" मतलब......? "
" मतलब नहीं समझा ....तू भी मूरखे है का रे ? ", पांडे ने हँसते हुए कहा , " यानी अब हमें भी ' हम दो , हमारे दो ' को भूलना होगा...... संख्या बढ़ाना होगा ....नहीं तो अपने ही देश में हम अल्पसंख्यक.....। "
ऐसी बातों पर मनुआ अक्सरहां खिसिया जाता है और तर्क - वितर्क शुरू कर देता है । किंतु , आज मजाकिया लहजे में कहा , " तो सोच का रहे हैं भइया ! ...लगाइए चौका - छक्का ..। "
" सच्चो में तू बड़का भकचोन्हर है ! तुमको नहीं मालूम है कि हमने कबे नसबंदी करा लिया है ..। "
" उससे का हुआ , भइया ! आपने महाभारत सिरियल तो देखा ही होगा ? "
" हँ देखा था , तो.......? "
" तो का .... ! याद कीजिए , धृतराष्ट्र तथा पांडु और उनके पुत्रों का जन्म कैसे हुआ था ...? "
" अरे बुड़बक ! ऊ समय भी ई कुल महलों में होता होगा , झोंपड़ियों में नहीं । वरना , बाँझ राधा कर्ण को गोद नहीं लेती । "
" वाह , भइया ! पहली बार आपने कोई अकल की बात की है...। " , कहकर मनुआ हँसने लगा ।
पांडे भी हँस पड़ा -- " तो , तुम का हमको मूरखे समझते हो ! ......लेकिन , मनुआ ! महाराज लोगिन के बात में भी हमको दम लगता है ...। "
" लगता है , तो बबुआ सबको बोलिए कि पोता - पोती से घर - अंगना भर दें । " , मनुआ के होठों पर अब भी हँसी थी ।
" अरे , ऊहो तो मुश्किले न है ....चार ठो पेट को तो रोटिए न जुट रहा है ....। "
" का कहते हैं भइया ! उस दिन आप ही तो कह रहे थे कि जो मुँह चीरता है , वोही रोटियो देता है ...। "
" दूर् बुड़बक , तू तो बात का बतंगड़ बना देता है ....। "
-- कहते हुए पांडे उठा और चल दिया । मैंने मनुआ की ओर देखा , वह मंद - मंद मुस्कुरा रहा था । उसने धीरे से कहा -- " जानते हैं बाबूजी , ई कुल थीसिस ई लोग गरीब लोगन को सुनाते हैं , खुद कभियो ई पर अमल नहीं करेंगे । "
मैंने उसका समर्थन करते हुए बात का रुख आम हड़ताल की ओर मोड़ दिया ।
" का हुआ पांडे भइया ? का कह दीहिन महाराज जी ने...? "
" तुमने नहीं सुना का ? अरे , अब ऊ कह रहे हैं.. और ठीके कह रहे हैं कि हमें भी अपना वंश विस्तार करना चाहिए..।"
" मतलब......? "
" मतलब नहीं समझा ....तू भी मूरखे है का रे ? ", पांडे ने हँसते हुए कहा , " यानी अब हमें भी ' हम दो , हमारे दो ' को भूलना होगा...... संख्या बढ़ाना होगा ....नहीं तो अपने ही देश में हम अल्पसंख्यक.....। "
ऐसी बातों पर मनुआ अक्सरहां खिसिया जाता है और तर्क - वितर्क शुरू कर देता है । किंतु , आज मजाकिया लहजे में कहा , " तो सोच का रहे हैं भइया ! ...लगाइए चौका - छक्का ..। "
" सच्चो में तू बड़का भकचोन्हर है ! तुमको नहीं मालूम है कि हमने कबे नसबंदी करा लिया है ..। "
" उससे का हुआ , भइया ! आपने महाभारत सिरियल तो देखा ही होगा ? "
" हँ देखा था , तो.......? "
" तो का .... ! याद कीजिए , धृतराष्ट्र तथा पांडु और उनके पुत्रों का जन्म कैसे हुआ था ...? "
" अरे बुड़बक ! ऊ समय भी ई कुल महलों में होता होगा , झोंपड़ियों में नहीं । वरना , बाँझ राधा कर्ण को गोद नहीं लेती । "
" वाह , भइया ! पहली बार आपने कोई अकल की बात की है...। " , कहकर मनुआ हँसने लगा ।
पांडे भी हँस पड़ा -- " तो , तुम का हमको मूरखे समझते हो ! ......लेकिन , मनुआ ! महाराज लोगिन के बात में भी हमको दम लगता है ...। "
" लगता है , तो बबुआ सबको बोलिए कि पोता - पोती से घर - अंगना भर दें । " , मनुआ के होठों पर अब भी हँसी थी ।
" अरे , ऊहो तो मुश्किले न है ....चार ठो पेट को तो रोटिए न जुट रहा है ....। "
" का कहते हैं भइया ! उस दिन आप ही तो कह रहे थे कि जो मुँह चीरता है , वोही रोटियो देता है ...। "
" दूर् बुड़बक , तू तो बात का बतंगड़ बना देता है ....। "
-- कहते हुए पांडे उठा और चल दिया । मैंने मनुआ की ओर देखा , वह मंद - मंद मुस्कुरा रहा था । उसने धीरे से कहा -- " जानते हैं बाबूजी , ई कुल थीसिस ई लोग गरीब लोगन को सुनाते हैं , खुद कभियो ई पर अमल नहीं करेंगे । "
मैंने उसका समर्थन करते हुए बात का रुख आम हड़ताल की ओर मोड़ दिया ।
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